Wednesday, November 11, 2009

Its alll about my Allahabad,,

ऐ सरज़मीने इलाहाबाद

तुझसे दूर होकर

हम दिन गुजारते हैं

तन्हाइयों में रोकर


कैसे कहें हमारे लिए

तू क्या है इलाहाबाद

बसता है दिल जहाँ

वो जगह है इलाहाबाद


हम तुझसे आशना थे

वो वक्त और था

हम भी थे इलाहाबादी

क्या खूब दौर था


शहरे वफ़ा तुझसे मेरी

पहचान है पुरानी

रौशन तेरे बाज़ार या

गलियाँ हों जाफरानी


मुसलमाँ जहाँ होली में

चेहरों को रंगे रहते

हिंदू भी मुहर्रम में

थे मर्सिया कहते


गुस्से में भी जुबां से

आप निकलता था

रस्ता बताने वाला

साथ में चलता था


जिसको न दे मौला

उस पर भी इनायत

मशहूर है अजदाद ने

छोड़ी नही गैरत


शेरो-सुखन से लोग

बातों की पहल करते

महफिल में बुला कर

क्या खूब चुहल करते


पतंगों से आसमान की

जागीर झटकते थे

वो ढील छोड़ देते

हम गद्दा पटकते थे


मकबूल बहुत है

कबाब जहाँ का

बेमिसाल आज भी

शबाब जहाँ का


हमको है याद आती

तेरी शाम अब भी

रौशन है ज़हनो दिल में

तेरा नाम अब भी


गर्दिशे हालात से

मजबूर हो गए

न चाहते हुए भी

तुझसे दूर हो गए.....

Sunday, November 1, 2009

जिस रोज़ हर पेट को रोटी मिल जायेगी

जिस रोज़ हर पेट को रोटी मिल जायेगी

जिस रोज़ हर चेहरा हँसता नज़र आयेगा
जिस रोज़ नंगे बदन कपड़ों से ढके होंगे
जिस रोज़ खुशियों में वतन डूब जायेगा
उस रोज़ मेरे नग्मों का अंदाज़ देखना
मेरी आवाज़ में एक नई आवाज़ देखना .


जिस रोज़ किसानो के भरे खलियान होंगे
और रोज़गारशुदा वतन के नौजवान होंगे
जिस रोज़ पसीने की सही कीमत मिलेगी
इन महलों से बड़े जिस रोज़ इन्सान होंगे
उस रोज़ मेरे नग्मों का अंदाज़ देखना
मेरी आवाज़ में एक नई आवाज़ देखना .


जिस रोज़ राह में कोई अबला न लुटेगी
जिस रोज़ दौलत से कोई जान न मिटेगी
जिस रोज़ यहाँ जिस्म के बाज़ार न लगेंगे
जिस रोज़ डोली दर से कोई सूनी न उठेगी
उस रोज़ मेरे नग्मों का अंदाज़ देखना
मेरी आवाज़ में एक नई आवाज़ देखना .


ये हाथ पसारे मासूम बचपन हजारों
जिस रोज़ मुझे राह में घूमते न दिखेंगे
जिस रोज़ ज़र्द, पिचके वीरान चेहरों पे
भूख के नाचते - गाते बादल न दिखेंगे
उस रोज़ मेरे नग्मों का अंदाज़ देखना
मेरी आवाज़ में एक नई आवाज़ देख