Sunday, November 1, 2009

जिस रोज़ हर पेट को रोटी मिल जायेगी

जिस रोज़ हर पेट को रोटी मिल जायेगी

जिस रोज़ हर चेहरा हँसता नज़र आयेगा
जिस रोज़ नंगे बदन कपड़ों से ढके होंगे
जिस रोज़ खुशियों में वतन डूब जायेगा
उस रोज़ मेरे नग्मों का अंदाज़ देखना
मेरी आवाज़ में एक नई आवाज़ देखना .


जिस रोज़ किसानो के भरे खलियान होंगे
और रोज़गारशुदा वतन के नौजवान होंगे
जिस रोज़ पसीने की सही कीमत मिलेगी
इन महलों से बड़े जिस रोज़ इन्सान होंगे
उस रोज़ मेरे नग्मों का अंदाज़ देखना
मेरी आवाज़ में एक नई आवाज़ देखना .


जिस रोज़ राह में कोई अबला न लुटेगी
जिस रोज़ दौलत से कोई जान न मिटेगी
जिस रोज़ यहाँ जिस्म के बाज़ार न लगेंगे
जिस रोज़ डोली दर से कोई सूनी न उठेगी
उस रोज़ मेरे नग्मों का अंदाज़ देखना
मेरी आवाज़ में एक नई आवाज़ देखना .


ये हाथ पसारे मासूम बचपन हजारों
जिस रोज़ मुझे राह में घूमते न दिखेंगे
जिस रोज़ ज़र्द, पिचके वीरान चेहरों पे
भूख के नाचते - गाते बादल न दिखेंगे
उस रोज़ मेरे नग्मों का अंदाज़ देखना
मेरी आवाज़ में एक नई आवाज़ देख

6 comments:

  1. काबिले तारीफ़. देश हित और भावनाएं- अच्छी हैं. आपके प्रयासों को सफलता मिले.
    --
    जारी रहें. शुभकामनायें.
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    स्त्री के ही एक दुखडे पर मुहीम, भाग लीजिये-
    महिलाओं के प्रति हो रही घरेलू हिंसा के खिलाफ [उल्टा तीर] आइये, इस कुरुती का समाधान निकालें!

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  2. साकारात्मक प्रयास. स्वागत है आपका.

    - सुलभ सतरंगी(यादों का इन्द्रजाल...)

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  3. सराहनीय ... लिखते रहे
    http://sujit-kumar-lucky.blogspot.com

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  4. Bahut badhiya.kash... vo din sheeghra aaye.

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  5. हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
    कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपने बहुमूल्य विचार
    व्यक्त करें

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